धन की देवी कैसे बनीं माता लक्ष्मी, उल्लू क्यों है उनका वाहन… बजट से पहले जानिए संपत्ति से जुड़ी ये जानकारी – Budget 2025 devi lakshmi goddess of wealth mata lakshmi puja vidhi mantra and story in hindi ntcpvp
बजट सत्र की शुरुआत 1 फरवरी को होने वाली है. इससे पहले पीएम मोदी ने शुक्रवार को देश को संबोधित किया. पीएम ने अपने संबोधन में देवी लक्ष्मी की कृपा की बात की और उनका जिक्र किया. भारत की सनातन परंपरा में देवी लक्ष्मी को धन और संपदा की देवी माना गया है.
भगवान विष्णु की पत्नी हैं देवी लक्ष्मी
पौराणिक कथाओं में वह भगवान विष्णु की पत्नी हैं. भगवान विष्णु संसार के आधार पर माने जाते हैं और देवी लक्ष्मी उन्हीं के शुभ लक्षणों से युक्त होकर संसार का कल्याण करती हैं. लक्ष्मी शब्द का अर्थ ही है, शुभ लक्षणों वाला/वाली. इसका एक और अर्थ ‘लक्ष्य की ओर अग्रसर’ भी है. फिर भी दोनों ही अर्थों को मिला दें तो भी लक्ष्मी शब्द का अर्थ हुआ कि ‘लक्ष्य पाने के शुभ लक्षणों से युक्त’. वास्तव में देवी लक्ष्मी यानी धन, सभी तरह के लक्ष्य को पाने में एक बेहद जरूरी साधन है.
धन की देवी कैसे बन गईं देवी लक्ष्मी?
अब सवाल उठता है कि देवी लक्ष्मी धन की देवी कैसे बनीं. इसे लेकर जो सबसे प्रामाणिक कथा है वह पद्म पुराण, कूर्म पुराण और स्कंद पुराण में दर्ज है और सागर मंथन से जुड़ी हुई है. इस कथा के अनुसार सागर मंथन से जो 13 रत्न निकले उसमें से एक देवी लक्ष्मी भी थीं. रत्न रूप में उत्पन्न होने के कारण वह सभी रत्नों की स्वामिनी बनीं. सभी प्रकार के रत्न उनकी ही प्रेरणा से प्रकट हुए थे. इसलिए लक्ष्मीजी का एक नाम रत्ना है. समुद्र को पुराणों में रत्नाकर कहा गया है. इस आधार पर भी उनका नाम रत्ना, रत्नप्रिया, चंद्रमा (जो खुद सागर से प्रकट हुआ) की बहन होने के कारण इंदिरा है.
पुराणें में दर्ज है कथा
स्कंद पुराण यह भी कहता है कि सृष्टि के प्रारंभ में ही जब पुराण पुरुष की उत्तपत्ति हुई तो अपनी ही इच्छा से वह दो भागों में बंट गए. इसमें एक भाग पुरुष का हुआ और उसी पुरुष के बाएं हाथ की ओर से एक स्त्री भी प्रकट हुई. इस स्त्री और पुरुष की जोड़ी ने ही संसार को सारी निधियां दीं. पुरुष ने ब्रह्मांड के ग्रह-नक्षत्रों को प्रकट किया, स्त्री ने सभी तरह के रत्न-आभूषण प्रकट किए. यही स्त्री लक्ष्मी कहलाई, जिसे देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पत्नी कहा गया है.
समुद्र मंथन से है देवी लक्ष्मी का संबंध
देवासुर संग्राम में विजय के बाद जब देवता अभिमानी हो गए और एक बार इंद्र ने इस घमंड में आकर ऋषि दुर्वासा का अपमान कर दिया, तब उन्होंने ही इंद्र को लक्ष्मी हीन होने का श्राप दे दिया था. उनके श्राप के कारण ही देवी लक्ष्मी को संसार से लुप्त हो जाना पड़ा और सारा खजाना और रत्न भंडार समुद्र में समा गया. कहने का अर्थ ये है कि देवी लक्ष्मी और उनकी कृपा का धन सृष्टि के आरंभ से मौजूद था, लेकिन उन्हें फिर से पाने के लिए सागर मंथन करना पड़ा था.
दीपावली मनाने की एक वजह यह भी?
इस सागर मंथन से एक-एक करके पहले 11 रत्न निकले, 12वें रत्न के रूप में देवी लक्ष्मी प्रकट हुईं और 13वें रत्न के रूप में भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुए, जिनके एक हाथ में आयुर्वेद का ज्ञान था और दूसरे हाथ में 14वां रत्न अमृत. इन सभी रत्नों के प्रकट होने से संसार फिर से धनवान हो गया और देवी लक्ष्मी धन की देवी कहलाईं.
धन की देवी के इसी आगमन के पर्व को दीपावली के नाम से जानते हैं. दीपावली की यह कथा, वनवास खत्म कर श्रीराम के अयोध्या लौटने की कथा से भी प्राचीन है.
भागवत में भी सुनाई जाती है एक कथा
देवी लक्ष्मी धन की देवी कैसे हैं, इसे लेकर भागवत में भी एक कथा कही जाती है. व्यासपीठ पर बैठे कथा वाचक इसे ऐसे सुनाते हैं कि, ‘सारा संसार जगदीश्वर भगवान विष्णु की संतान है. भगवान विष्णु तबतक भोजन नहीं ग्रहण करते हैं, जबतक कि संसार के हर जीव को कुछ न कुछ मिल न जाता हो, और भगवान विष्णु ने भोजन कर लिया है तो इसका अर्थ है कि सारे संसार ने भोजन कर लिया है.
देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु पर जाहिर की शंका
एक बार देवी लक्ष्मी ने क्षीरसागर में इसे लेकर शंका जाहिर की. उन्होंने पूछा कि, ‘प्रभु क्या ये सत्य है कि आपको सभी प्राणियों के भोजन कर लेने का पता चल जाता है?’ भगवान विष्णु ने हंसते हुए कहा कि, देवी, संसार को धन-धान्य (धन और अनाज) देने का काम आपका है, तो मैं आपके किसी काम में शंका कैसे जता सकता हूं. मैं तो ये मान लेता हूं कि आप सारे संसार का ठीक से ध्यान रख रही हैं. बात ये है कि असल में आप अपनी संतानों को भोजन कराए बिना, मुझे भोजन ही परोसती हैं.’ ये सुनकर देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु की परीक्षा लेनी चाही.
ऐसे ली भगवान विष्णु की परीक्षा
अगले दिन उन्होंने एक डिबिया में एक चींटी को बंद कर दिया. दिनभर हो गया, सारे संसार ने भोजन कर लिया, तब देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु की थाली परोसी. भोजन सामने आते ही भगवान विष्णु अलग-अलग पकवानों का आनंद लेने लगे. देवी लक्ष्मी ने कहा- क्या सारे संसार ने भोजन कर लिया है प्रभु? भगवान विष्णु बोले- ‘जी देवी, मैंने कहा न कि संसार को खिलाए बगैर आप मुझे भोजन नहीं कराती हैं.’
तब देवी लक्ष्मी बोलीं ‘लेकिन मुझे लगता है कि एक चींटी ने अभी भी भोजन नहीं किया है.’ तब भगवान विष्णु मुस्कुरा कर बोले- आप चाहें तो जांच कर लें. ये सुनकर देवी लक्ष्मी प्रमाण के लिए अपनी वही डिबिया ले आईं, जिसमें चींटी बंद थी. उन्होंने भगवान विष्णु के सामने डिबिया खोली तो खुद ही आश्चर्य में पड़ गईं. वहां डिबिया में कुमकुम लगे दो चावल के दाने पड़े मिले.
तब भगवान विष्णु बोले कि जब आप इस डिबिया को बंद कर रही थीं तभी आपके मस्तक पर लगा ये अक्षत-कुमकुम डिबिया में गिर गया था. इस बार वह ठहाका लगाकर हंसे, और बोले कि आपके हाथों में भी रहते हुए कोई आपकी कृपा से बच जाए, विधाता ने इतना भाग्यहीन तो अभी किसी को नहीं बनाया है. ये सुनकर देवी लक्ष्मी भी खिलखिला उठीं.
उल्लू कैसे बन गया देवी लक्ष्मी का वाहन
देवी लक्ष्मी का वाहन उल्लू को माना जाता है. दरअसल उल्लू मूर्खता नहीं, बल्कि ज्ञान-पैनी दृष्टि और तीव्रता का प्रतीक है. उल्लू का एक गुण और है कि वह जब अपनी गर्दन घुमाता है तो धीरे-धीरे 170 अंश तक मोड़ लेता है. उसके इस तरह करने की बार-बार की गतिविधि की प्रोसेस बहुत धीमे होती है और इसी स्लो प्रोसेस के कारण उसे धीमा जीव कहा जाता है और वह मूर्खता का पर्याय बन गया है, लेकिन सनातन में उसे हंस के विपरीत पदवी मिली है.
हंस जहां सम्यक दृष्टि और सम्यक ज्ञान का प्रतीक है, वहीं उल्लू तीव्र बुद्धि का प्रतीक है. इस तीव्र बुद्धि को कुटिलता भी कहते हैं, जो रजोगुड़ से आती है. इसलिए उल्लू देवी लक्ष्मी का वाहन है.
इसे लेकर एक लोककथा भी प्रचलित है कि एक बार देवी लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण के लिए आ रही थीं. क्षीरसागर में तो वह भगवान विष्णु के साथ शेष शैय्या पर ही बैठती हैं और उनका आसन कमल है, लेकिन उन्होंने अपना वाहन नहीं चुना था. भगवान विष्णु का वाहन गरुण पक्षी था. शिव के लिए बैल, पार्वती ने शेर को चुना. इंद्र ने ऐरावत को चुना, कार्तिकेय ने मयूर और गणेश जी ने चूहे को वाहन बनाया.
अब जो बचे हुए पक्षी व जानवर थे वह देवी लक्ष्मी का वाहन बनना चाहते थे, तब देवी लक्ष्मी ने कहा, जिस दिन मैं धरती पर उतरूं और जो उस वक्त मेरे पास पहले पहुंचेगा तो वही मेरा वाहन बनेगा. सभी पक्षी और जानवर देवी के आगमन का इंतजार करने लगे. देवी अंधेरी रात में पृथ्वी पर आईं, कोई उन्हें देख नहीं सका, लेकिन उल्लू ने उन्हें पहचान लिया और तेजी से उड़कर उनके पास पहुंचा. इस तरह देवी लक्ष्मी का वाहन उल्लू बन गया.
आदि शक्ति का ही एक स्वरूप हैं देवी लक्ष्मी
हालांकि शाक्त परंपरा में देवी लक्ष्मी को आदिशक्ति का ही एक स्वरूप बताया गया है और वह शक्ति के ही तीन रूपों में से एक हैं. जिन्हें सत्व यानी सरस्वती, रज यानी लक्ष्मी और तम यानी महाकाली के नाम से पहचाना गया है. इसी का सिद्धांत आगे बढ़ता है, लक्ष्मी के आठ स्वरूप सामने आते हैं, जिन्हें अष्टलक्ष्मी कहा गया है. ये अष्टलक्ष्मी असल में आठ प्रकार की सिद्धियां और संपत्तियां हैं. इन्हें आदिलक्ष्मी (प्रारंभ की देवी), धनलक्ष्मी (संपत्ति की देवी) धान्य लक्ष्मी (अनाज और फसलों की देवी), गजलक्ष्मी (सभी प्रकार के सौभाग्य और ऐश्वर्य की देवी), संतानलक्ष्मी (संतान देने वाली मां स्वरूप देवी), वीरलक्ष्मी (वीरता की देवी), विजयलक्ष्मी (विजय की देवी), विद्या लक्ष्मी (ज्ञान के देवी)
ऋग्वेद में श्री नाम से मिलता है वर्णन
ऋग्वेद में देवी लक्ष्मी का वर्णन ‘श्री’ नाम से मिलता है. ऋग्वेद का श्री सूक्त देवी लक्ष्मी की ही आराधना का सूक्त है, जिसमें संसार को सभी प्रकार की दरिद्रता से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की गई है. श्री, देवी लक्ष्मी के लिए एक सम्मानजनक शब्द है, जो कि देवी लक्ष्मी के भूदेवी स्वरूप का भी नाम है, जिसे माता कहा जाता है. तिरुपति में भगवान विष्णु की पूजा करते हुए श्रीसूक्त का पाठ भी किया जाता है, जो नित्य पूजा का जरूरी हिस्सा है.
जैन धर्म में भी लक्ष्मी एक महत्वपूर्ण देवी हैं. उन्हें जैन धर्म भी सौभाग्य का प्रतीक कहता है. बौद्ध मत में भी लक्ष्मी प्रचुरता और भाग्य की देवी रही हैं और कई बौद्ध मंदिरों, स्मारकों और गुफाओं में उनकी मौजूदगी दिखाई देती है.
मुंबई-मायानगरी और देवी लक्ष्मी
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को मायानगरी कहा जाता है. माया देवी लक्ष्मी का ही एक प्रतिरूप हैं. मुंबई का नाम भी एक पौराणिक देवी मुंबा माता के नाम पर पड़ा है. इन्हें वहां के प्राचीन जनजातीय लोग अंबा आई/ मुंबा आई कहते थे. यही मुंबा आई, आगे चलकर मुंबई बन गया. कोल्हापुर में भी प्रसिद्ध अंबाबाई का मंदिर स्थापित है, जिसे महालक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है.यह मंदिर द्वापर युग का बताया जाता है और कहते हैं कि यहां माता लक्ष्मी का खुद का निवास है. इस नगरी का एक प्राचीन नाम करवीर पुर बताया जाता है, जहां देवी ने एक राक्षस का वध किया था और भी अपने भक्तों की मांग पर वहीं अपना स्थान बना लिया था. अंबा बाई शक्ति पीठों में भी गिना जाता है.